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1:- फारेस्ट डिपार्टमेंट के अनुसार हर राज्य में,  हर राज्य का कुल फारेस्ट हिस्सा (फारेस्ट एक्ट १९८०) के अनुसार जो 33% होना अनिवार्य है, जो दिल्ली में घटकर 20% ही रह गया है ।

2:- 27 नवंबर  2018 की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में कितने वृक्ष हैं , इसकी जानकारी ठीक-ठीक प्रमाणिक स्तर पर नहीं है ।

3:- हर साल शव दाह संस्कार के लिए लगभग 5 करोड पेड़ों को काट दिया जाता है ।
एक शव के अंतिम संस्कार में लगभग 4 से 5 क्विंटल लकड़ी की आवश्यकता रहती है , तात्पर्य यह हुआ कि मरने के बाद भी मनुष्य प्रकृति का शोषण करता रहता है ।
यदि हम बिजली से शव दाह संस्कार करे , तो इन वृक्षों को आने वाली पीड़ी और अपने सव्स्थ्य हेतु के लिए बचाया जा सकता है ।
जरा सोचिये ???

4:- विकास के नाम पर दिसंबर 2019 की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 वर्ष में लगभग 1.09 करोड पेड़ों का सफाया हो चुका है जिसके बदले में कहा जाता है 12 करोड़ 60 लाख पेड़ लगाए गए हैं, परंतु शायद यह कागजों तक ही सीमित रह गए हैं ।

5:- विकास के नाम पर सड़कों का रेलों का निर्माण उत्तराखंड में जो किया जा रहा है जिसके तहत अनेक लोगों की , किसानों की जमीने एक्वायर करके उस पर निर्माण किया जा रहा है और उनको भारी मुआवजा दिया गया , क्या कभी किसी ने सोचा कि वह उस पैसे से नशा करेंगे और बर्बाद हो जाएंगे उनको निकम्मा बना दिया गया है ।
वह निकम्मे हो जाएंगे जो खेत उन्हें उनके जीवन यापन की सुविधाएं दिया करते थे ,
वही अब उनका काम करने पर से भरोसा उठ जाएगा , काम नहीं कर पाएंगे जिसके कारण उनकी आजीविका समाप्त हो सकती है और आने वाली उनकी पीढ़ी भीख-मंगो की तरह जीवन व्यतीत कर सकती है क्योंकि वह अपना सारा पैसा लुटा देंगे , गवा देंगे ।

6:- अहमदाबाद से मुंबई के बीच में प्रस्तावित चलने वाली बुलेट ट्रेन जिसकी कुल दूरी 508 किलोमीटर होगी और उसका जो अनुमानित किराया है ₹10,000/- प्रति व्यक्ति रखा जायेगा ।
यह एक सोचने की बात है कि जब हवाई यात्राएं मौजूद हैं , तो ऐसी रेल का निर्माण क्यों करना ???
और भी इस रेल के तहत 53467 हरे-भरे आम के पेड़ो का बलिदान हो जाएगा, जिसमें दुनिया भर की अनेकानेक विशिष्ट प्रजातियां वास करती हैं ।
जिससे प्राकृतिक संतुलन भी बना रहता है और वहां से किसानों से भी जमीन को छीनकर उन्हें मुआवजा दे दिया जाएगा । निकम्मी सरकार उनको भी निकम्मा ही कर देगी जिससे कि वह नशे में चूर रहें और उस पैसे को जल्दी खत्म कर देंगे और उनका सारा जीवन भिखारियों की तरह हो जाएगा ।
अभी तो वह अपने खेत के मालिक है बाद में वह भिखारी ही रह जाएंगे यह एक सोची समझी चाल हो सकती है , जरा सोचिए ऐसे विकास से क्या फायदा???

7: आजकल देखने में आ रहा है दिल्ली जल बोर्ड अपने मेन पाइप से घरों में जो कनेक्शन देने होते हैं, वहां पर लोहे के पाइप हटाकर प्लास्टिक के एमडीपीई पाइप लगाए जा रहे हैं , जो कि स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हैं आपको यह बता देना चाहते हैं ,
अमेरिका में लास वेगास में बहुत समय पहले लगभग 86000 पानी के लिए एचडीपीई पाइप लगाए गए थे , जिसके कारण वहां के लोगों पर उसका बहुत बुरा असर देखने को मिला जैसे , लोग समय से पहले बूढ़े हो गए और कुछ लोगों के हृदय रोग भी हुए जिसके कारण मृत्यु दर बढ़ गया ।
आज वहां की सरकार एचडीपीई पाइप को बदलने की सोच रही है और शायद काम भी शुरू हो चुका है परंतु यहां की सरकार को देखिए कि वह इसको नजरअंदाज करते हुए यहां पर प्लास्टिक के एम डी पी के पाइप को प्रोत्साहन दिया जा रहा है , जिससे यहां पर भी इससे ज्यादा भयानक बीमारियां हो सकती हैं ,जरा सोचिए ???

8:- क्या आपको पता है कि आजकल सरकार की अपील और भय के कारण आदमी के अपने घरों में शिष्टाचार पूर्वक सिमटने से :-
प्रकृति में बाहर कूड़े में कमी हुई, प्रदूषण के स्तर में गिरावट आई है ,पक्षियों के चहकने की आवाजें स्पश्ट सुनाई दे रही है , पशुओं की पदचाप सुनाई दे रही है , जिनसे प्राकृतिक संगीत उत्पन्न हो रहा है , और मनुष्य के डर से जो जीव जंतु भाग गए थे ,वह वापस आना शुरू हो गए है ।
इसका एक प्रमुख उदाहरण इटली के वेनिस शहर में मछलियों का वापस आना , हंस के जोड़े का दिखाई देना और डॉल्फिन का वहां पर आ जाना इस बात का सूचक है कि धरती पर प्रकृति में मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है,
जो उत्कृष्ट तो है ही परंतु साथ ही अपने लाभ के लिए प्रकृति का निरंतर शोषण भी करता रहा और गंदगी भी फैलाता रहा ,क्या हम इस अवस्था को सामान्य जीवन के चलते इसको बरकरार नहीं रख सकते जरा सोचिए ???

9:- सन्न १७३० में बिश्नोई समाज की अमृता देवी ने खेसारी गांव, राजस्थान से चिपको आंदोलन शुरू किया जिसमे सभी जन पेड़ों को बचाने के लिए पेड़ों से चिपक गए यदि आज उस समय वह आंदोलन चिपको आंदोलन नहीं किया होता तो आज हम लोग जो प्राकृतिक संपदा का उपभोग कर रहे हैं शायद उससे वंचित रहते और भी कई प्रकार की प्रजातियां विलुप्त हो चुकी होती, उसी समय तक ।
आज देखने में आता है लोग मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, के लिए बहुतायत में दान दक्षिणा देते हैं यदि उसके स्थान पर वृक्ष लगवाए जाएं और उनकी देखभाल की जाए उससे अधिक उससे सुंदर दान नहीं हो सकता धन्यवाद

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